पोलियो की खुराक से अगर बनाई दूरी तो बच्चों की "अपंगता" बनेगी मजबूरी
लखीमपुर खीरी. वैसे तो पल्स पोलियो का स्लोगन है दो बूंद जिंदगी की, लेकिन आज भी कुछ क्षेत्रों में लोग भ्रांतियां के चलते इससे परहेज करते हैं। जिसके खामियाजे के तौर पर उन्हें अपने बच्चो को अपंगता की ओर जाते देखना पड़ता है। जबकि सरकार द्वारा पोलियो जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति जंग अभी भी जारी है।
ये होते हैं लक्षण
जी हां आमतौर पर पोलियो कुछ सामान्य लक्षणों के साथ पोलियो की शुरुआत होती है। जैसे बुखार, सिरदर्द, मितली, थकान और मांसपेशियों में दर्द तथा ऐंठन। इसके बाद और अधिक गंभीर लक्षण होने के साथ एक या एक से अधिक अंगों में स्थायी लकवा मार जाता है। जिससे उनमें अपंगता आ जाती है। पोलियो के सभी मामलों में आधे से अधिक मामले पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में होते हैं। संक्रमित व्यक्तियों में 5 से 10 प्रतिशत के बीच रोगियों में सर्वाधिक सामान्य लक्षण दिखाई देते हैं। जबकि 90 प्रतिशत से अधिक में इस बीमारी के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते।
अभियान चला कर की जाती है पोलियो की रोकथाम
स्वास्थ्य विभाग द्वारा अभियान चलाकर पोलियो जैसी गंभीर बीमारी से निजात दिलाने के लिए निरंतर अभियान चलाये जाते हैं। पोलियो की खुराक वायरस के लिए प्रतिरक्षा उत्पन्न करने और लकवा मार जाने वाले पोलियो से सुरक्षा प्रदान करने में अत्यंत प्रभावी है। पोलियो वायरस से संक्रमित व्यक्तियों के लिए इसका कोई इलाज नहीं है। परन्तु इसके लक्षणों को समाप्त करने के लिए उपचार मौजूद है।
नहीं है कोई स्थाई इलाज
पोलियो से प्रभावी व्यक्तियों को चलने फिरने के आधुनिक साधनों की सहायता से पुनर्वास भी प्रदान किया जा सकता है। ताप और शारीरिक चिकित्सा उपचार से संक्रमित व्यक्ति की मांसपेशियों को उद्दीपित करने में सहायता मिलती है और मांसपेशियों को राहत देने के लिए एंटीस्पासमोडिक दवाएं दी जाती हैं। इससे चलने फिरने में सुधार तो हो सकता है, लेकिन स्थायी रूप से हो चुके पोलियो के कारण लकवा का प्रभाव मिटाया नहीं जा सकता।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें