रेलवे पटरी के किनारे संदिग्ध परिस्थितियों में मिला नर हाथी का शव

रेलवे पटरी के किनारे संदिग्ध परिस्थितियों में मिला नर हाथी का शव


देव श्रीवास्तव
लखीमपुर-खीरी। जिन जंगलों में बेजुबान अपने आप को सुरक्षित महसूस करते थे उन्हीं जंगलों में इन बेजुबानों की मौत के मंजर थमने का नाम नहीं ले रहा। एक बार फिर दुधवा जंगल के कर्तनिया घाट रेंज में एक नर हाथी का शव शनिवार की दोपहर संदिग्ध परिस्थितियों में रेलवे पटरी के नजदीक मिला है। मौके पर पहुंची वन विभाग की टीम मौत के कारणों का पता लगाने की कोशिश कर रही है।
दुधवा का जंगल हो या उसके अंतर्गत आने वाली अलग-अलग रेंज इन दिनों लगभग सभी रेंजों से किसी न किसी बेजुबान की मौत की खबर अखबारों की सुर्खियां बन रही है। वन अधिकारी इस मामले में क्या कर रहे हैं यह किसी को नहीं पता, इन बेजुबानों की सुरक्षा के लिए सरकार तो मोटा बजट खर्च करती है परंतु उस खर्च का कोई भी असर होता नहीं दिखाई दे रहा है। बाघ, तेंदुआ, हिरण व चीतल सहित तमाम ऐसे जानवर हैं जिनकी मौत अकारण ही हो जाती है, सिर्फ इतना ही नहीं विशालकाय हाथी भी अब जंगल में सुरक्षित नहीं है। पहले भी संदिग्ध परिस्थितियों में कई हाथियों की जान जा चुकी है। इस बार फिर ऐसा ही कुछ हुआ है।
कर्तनिया घाट रेंज के अंतर्गत खीरी जिले के खैरटिया मजरा स्टेशन के पिलर नंबर 177/5 के पास एक नर हाथी की मौत होने की सूचना शनिवार की दोपहर वन विभाग को मिली। जिसके बाद वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची। रेलवे पटरी के पास नर हाथी का शव मिलने से वन विभाग की टीम भी कई तरह के अनुमान लगा रही है, परंतु वन अधिकारियों का कहना है उच्चाधिकारियों को मामले से अवगत कराया गया है। डॉक्टरों के पैनल द्वारा मौके पर हाथी का पोस्टमार्टम कराया जाएगा। जिसके बाद ही मौत के सही कारणों का पता चल सकेगा। फिलहाल हाथी के शव को सुरक्षित रखने के लिए जंगल में सुरक्षा व्यवस्था कर दी गई है।

इन बेजुबानों की मौत के जिम्मेदार शिकारी हैं या वन विभाग के अधिकारी?

अब इस विषय पर गंभीरता से सोचना होगा कि लगातार इन बेजुबानों की हो रही मौत पर अंकुश क्यों नहीं लगाया जा रहा है, ऐसे क्या कारण है कि वन विभाग के अधिकारी इन बेजुबानों की मौत के कारणों का न तो पता लगा पा रहे हैं और न ही इनकी मौतों को रोक पा रहे हैं। जंगल में होने वाली छोटी मोटी कार्रवाई में कई बार वन विभाग के अधिकारी एक-दो शिकारियों को पकड़कर कर जेल भेज कर अपने दायित्व की इतिश्री करते दिखाई देते हैं, परंतु अभी तक ऐसी कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई है जिसमें बड़े मामलों को खोला गया हो, ना ही कोई बड़ी कार्रवाई हुई है, जिसमें उन शिकारियों को पकड़ा गया हो जो अलग-अलग जगहों पर बैठकर इन बेजुबानों की मौत का सौदा कर देते हो। फिलहाल यह सवाल अभी सवाल ही है कि इन बेजुबानों की मौत का कारण इन शिकारियों को माना जाए या लापरवाह वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों को?

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