अपने भाषण में प्रधानमंत्री द्वारा डॉ राजेंद्र प्रसाद का नाम ना लिए जाने से कायस्थ समाज नाराज
देव नन्दन श्रीवास्तव
लखीमपुर खीरी। प्रधानमंत्री द्वारा अमृत महोत्सव के प्रारंभिक भाषण में स्वतंत्र भारत के प्रथम नागरिक संविधान सभा के अध्यक्ष एवं राष्ट्रपति रहे डॉ राजेन्द्र प्रसाद का नाम नहीं लिया था। आज उन्होंने पुराने संसद भवन में दिये गये भाषण में भी नाम नहीं लिया। सम्भवतः उन्हें भी नेहरू जी की तरह राजेन्द्र प्रसाद से भी ऐलर्जी है। यद्यपि वे विदशों में जाकर उस देश के प्रथम राष्ट्रपति के समाधिस्थल पर स्वयं जाते हैं। देश के प्रधानमंत्री द्वारा डॉ राजेंद्र प्रसाद की अनदेखी किए जाने से एक समाज में गहरी नाराजगी है। इसे लेकर कैलाश चन्द्र श्रीवास्तव पूर्व प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष एवं गुजरात प्रभारी अखिल भारतीय कायस्थ महासभा द्वारा समाज की ओर से आपत्ति दर्ज की गई है।
कैलाश चन्द्र श्रीवास्तव पूर्व प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष एवं गुजरात प्रभारी अखिल भारतीय कायस्थ महासभा ने नाराज की जाहिर करते हुए बताया कि नेहरू जी ने डॉ राजेंद्र प्रसाद को दिल्ली में दो गज जगह नहीं दी और मोदीजी ने उन्हें अपने भाषणों में जगह नहीं दी। जिससे पूरे कायस्थ समाज में नाराजगी है।
1997 से उनकी सपत्नीक मूर्ति बोरे में लिपटी अपने अनावरण की बाट जोह रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव के अंतिम मीटिंग बलिया में उन्हें मूर्ति अनावरण के लिये प्रधानमंत्री बनने के भविष्य वाणी के साथ पूर्वी तूफान पत्रिका के माध्यम से अनुरोध किया गया था। मोदीजी जी यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि सरदार पटेल के परममित्र होने के कारण ही उन्हें नेहरू जी के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा था और इसीलिए बिना इलाज सीलन भरी कोठरी में अंतिम साँस लेनी पड़ी थी।
अपार दुःख होता है जब किसी समाज के नेता को इसलिए सम्मान नहीं दिया जाता क्योंकि समाज के वोट उसे बिना कुछ किये ही मिल जाता है। समाज अपने राष्ट्रवादी विचार धारा के कारण जातीय राजनीति नहीं करता और अपने नेताओं के सम्मान के लिए संघर्ष भी नहीं करता।इसीलिए केन्द्र सरकार ने प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया और प्रदेशों में समुचित स्थान नहीं।यहाँ तक कि समाज व्यूरोकेट्स को भी समुचित पद नहीं दिये जाते।बल्कि समाज के नेताओं को मंत्रिमंडल एवं जिलों से हटाने का कार्य किया जाता है। अर्धनिद्रा में सोए समाज को पूर्ण निद्रा में सोना होगा जिससे उन्हें कुछ समाज के शुभचिंतकों के माध्यम से जगाया जा सके, अन्यथा इस समाज को तो उनके अपने भगवान भी नहीं बचा सकेंगे। और पूरे विश्व मे बुद्धि एवं बल के साथ अपने समाज के कीर्ति को फैलाने वाले महापुरुषों को भुला दिया जावेगा।
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