प्रभु मैं अपनी नाभि में तलवार मार कर कर लूंगा खुदकुशी
शिरीष श्रीवास्तव
लखीमपुर-खीरी। जब रावण का नाम आता है तो मन में तस्वीर घुमड़ती है एक आदमकद महाबली की। चेहरे पर रौब। आंखों में गुस्सा और ताव देती मूंछें। लेकिन अगर आप लखीमपुर मेले में आ जायें तो आपकी सोच ही बदल जायेगी। यहां खड़ा होता है एक ऐसा रावण जिसके चेहरे पर न रौब है और न ही वह आदमकद। शरीर से भी इतना कमजोर और लाचार कि बेचारा अपने पैरों पर खड़ा भी न हो सके। देश के इतिहास में यह पहला रावण है जिसे बैठे-बैठे दहन किया गया।वर्ष 2009 में पहली बार रावण की कमजोरी सामने नजर आई थी। कद तो लगातार घट ही रहा था। लेकिन पहला मौका था जब उसकी टांगें भी जवाब देती नजर आई थीं। सुबह उसकी हालत देख लोगों ने मजाक उड़ाया कि शायद उसे पोलियो हो गया है। रात में जब आग लगाई गई तो रावण धड़ाम से गिरा। तब रामलीला वालों को राम का अधूरा काम निबटाना पड़ा। और रावण जलाया जा सका।
इसके बाद तो रावण के हर बार अलग-अलग रूप नजर आये। कभी गरीबी का शिकार रावण फटे-नुचे कपड़ों में नजर आया तो कभी कुपोषित। पिछले साल तो उसका चेहरा ही प्लास्टिक सर्जरी मांग रहा था। मेला कमेटी का कहना है कि लगातार बढ़ती महंगाई के चलते रावण को आदमकद बनाने में बहुत खर्चा आता है। कमेटी के पास इतना बजट नहीं है। इसलिये बुत बनाने में समझौता करना पड़ता है।
इस बार का रावण तो आज तक के इतिहास में ही सबसे जुदा है। पहली बार ऐसा रावण जलाया जायेगा जो रणभूमि में हथियार डाले बैठा होगा। राम को राहत देने के लिये दोनों पांव और एक सर पहले ही काट लिया गया है। जब पांव ही नहीं तो जूते-मोजे कहां पहनेगा। सो यह खर्च भी बचा लिया गया। हाथ में पकड़ी ढाल मुक्के के बराबर है। वहीं तलवार तो ऐसे पकड़े है मानों खुद राम से कह रहा हो कि आप आराम करो प्रभू वक्त आने पर मैं खुद इसे नाभि में मारकर खुदकुसी कर लूंगा। इससे मेला कमेटी के एक तीर का भी खर्च बचेगा।
रावण को देख कर लोगों में मेला कमेटी और नगर पालिका के प्रति गुस्सा है।
- बाक्स
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