परमात्मा का ज्ञान पाने के लिए चाहिए निर्मल मन- स्वामी गंगेशानंद

परमात्मा का ज्ञान पाने के लिए चाहिए निर्मल मन- स्वामी गंगेशानंद

उदासीन आश्रम में चल रहा गीता ज्ञान यज्ञ

देव श्रीवास्तव
लखीमपुर-खीरी। उदासीन आश्रम में चल रहे गीता-ज्ञान-यज्ञ के पांचवे दिन स्वामी गंगेशानंद ने बताया जैसे दूध रखने के लिए साफ वर्तन चाहिए वैसे ही ज्ञान धारण करने के लिए निर्मल -मन चाहिए। जैसे गंदे वर्तन में दूध नहीं रुकता,फट जाता है, वैसे ही गन्दे मन में परमात्मा का ज्ञान नहीं रुकता छल, कपट, झूंठ, चालाकी, धोखा, विश्वासघात मन के दोष हैं। आत्म शुद्धि के लिए दान, तप, यज्ञ, दम आवश्यक है। दान देने से धन सम्पदा, वैभव वढता है, मन प्रसन्न रहता है। दान लेने और देने वाले दोनोंं को लाभ होता है। लेने वाले से देने वाले का ज्यादा लाभ होता है। लेने वाले का केवल भौतिक लाभ है जबकि देने वाले का भौतिक के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ भी है।

 जिनमें तपोवन कानपुर से आए वेदांत दर्शन के विद्वान स्वामी गंगेशानंद ने बताया कि अपनी इच्छाओं को रोक कर जो कष्ट होता है वह तप है। अपनी कामनाओं, वासनाओं की आहुति ज्ञान-अग्नि में देना चाहिए। अपनी ज्ञानेन्द्रियों-कर्मेन्द्रियों को दबाना ही दम है। अपनी इच्छाओं को मार कर दूसरों की सहायता करना ही त्याग है। इस तरह मन को साफ कर ज्ञान को धारण करना चाहिए। स्वामी गंगेशानंद ने आत्म शुद्धि के उपायों की चर्चा को आगे बढाते हुए बताया कि हमेंअपने जीवन मेंअहिंसा,सत्य,अक्रोध, त्याग,शान्ति,निन्दा-चुगली न करना,दया,लालच न करना,लज्जा,चञ्चलता से बचना आदि को अपनाना चाहिए। किसी को मन, वाणी, देह से कष्ट--पीडा न पहुॅचाना अहिंसा है, जो जैसा है प्रिय शब्दों में बोल देना सत्य है। किसी की किसी बात या व्यवहार पर गुस्सा न करना (भले कोई हमारा अपमान या अहित करे) अक्रोध है। अपने अंहकार और स्वार्थ को छोडना त्याग है। किसी भी स्थिति में काम, क्रोध, लोभ, मद मत्सर आदि का प्रभाव न स्वीकार करना शान्ति है। किसी की पीठ पीछे बुराई करना निन्दा है, उस के सामने, मुहॅ पर दोषों, कमियों को बोलना अपमान है। इन दोषों से बचना अपशुन है। किसी की वस्तु कीअच्छाई सुन कर या देख कर उसे प्राप्त  करने की इच्छा करना लालच है।मन की स्थिरता का न होना या मन का इधर-उधर भागना चपलता है इन से भी साधक को बचना चाहिए।ये सारे मानवीय गुण हैं। अतः हमें इन सारे गुणों को धारण करना चाहिए। इस से हमारा चित्त शुद्ध होगा,निर्मल होगा और हम में ईश्वरीय ज्ञान की पात्रता आएगी।आज की मुख्यअतिथि डाॅ. सुरचना त्रिवेदी ने गुरुदेव के चित्र पर माल्यार्पण कर पीठ व्यास का आशीर्वाद प्राप्त किया। सत्संग गोविंदा कृष्ण कुमार श्रीवास्तव, हरि प्रकाश त्रिपाठी, हरि प्रकाश श्रीवास्तव, डॉ. एससी मिश्रा, डॉ आरएस शर्मा, नारायण सिंह चौहान व बलवीर सिंह समेत काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।

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