भारत के लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल व आचार्य नरेन्द्र देव की जयन्ती का मनाया गया कार्यक्रम
देवनन्दन श्रीवास्तव
लखीमपुर खीरी। विद्या भारती विद्यालय पं0 दीनदयाल उपाध्याय सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कालेज यूपी बोर्ड, लखीमपुर में 31 अक्टूबर 23 को भारत के लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल व आचार्य नरेन्द्र देव की जयन्ती का कार्यक्रम मनाया गया।कार्यक्रम का शुभारम्भ विद्यालय के प्रथम सहायक कुन्तीश अग्रवाल नें मां सरस्वती, सरदार वल्लभ भाई पटेल व आचार्य नरेन्द्र देव के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन व पुष्पार्चन कर किया।इस अवसर पर विद्यालय के आचार्य बृजेन्द्र वर्मा जी नें भैयाओं को बताया कि भारत के लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयन्ती को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नडियाद में हुआ। जब भारत आजाद हुआ तब हमारा मुल्क 565 छोटी बड़ी देशी रियासतों में बंटा हुआ था। इन्हें हिंदुस्तान में मिलाना बेहद जरूरी था जो कि एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। कई रियासतें भारत में न मिलकर खुद को अलग स्वतंत्र रखना चाहती थीं। सरदार पटेल भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और पहले गृहमंत्री थे। उन्होंने देश के एकीकरण में बेहद अहम भूमिका निभाई। यही वजह है कि उन्हें राष्ट्रीय एकता का प्रणेता माना जाता है। सरदार पटेल अपने बेहतरीन नेतृत्व और प्रशासनिक क्षमताओं के लिए भी जाने जाते थे। पूरे राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सरदार पटेल को भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देशी रियासतों का एकीकरण कर अखंड भारत के निर्माण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और राजनैतिक दूरदर्शिता से छोटी रियासतों को संगठित किया। भारत के भौगोलिक एकीकरण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका होने के चलते उनकी जयंती को देश में राष्ट्रीय एकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। पहली बार राष्ट्रीय एकता दिवस सन 2014 में मनाया गया था।सरदार पटेल का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल और माता लाडबाई की चौथी संतान थे। उन्होंने लंदन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई की और वापस आकर अहमदाबाद में वकालत करने लगे। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लिया। स्वतंत्रता आंदोलन में सरदार पटेल का पहला और बड़ा योगदान 1918 में खेड़ा संघर्ष में था। उन्होंने 1928 में हुए बारदोली सत्याग्रह में किसान आंदोलन का सफल नेतृत्त्व भी किया। बारदोली सत्याग्रह आन्दोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रदान की थी। सरदार पटेल स्पष्ट व निर्भीक वक्ता थे। यदि वे कभी गांधी जी व जवाहर लाल नेहरू से असहमत होते तो वे उसे भी साफ कह देते थे। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उन्हें तीन साल की कैद हुई। महात्मा गाँधी नें सरदार पटेल जी को लौहपुरूष की उपाधि दी थी। सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसम्बर 1950 को मुम्बई में हुआ था। सन 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त ‘भारत रत्न‘ से सम्मानित किया गया था।तत्पश्चात उन्होंने आचार्य नरेन्द्र देव जी के बारे में बताया कि आचार्य नरेन्द्र देव को भारतीय समाजवाद का पितामाह व भारतीय संस्कृति का संपोषक तथा संवाहक भी कहा जाता है। यह शिक्षक थे। इनका जन्म 31 अक्टूबर 1989 को सीतापुर जिले में हुआ था। इलाहाबाद से स्नातक तथा बनारस से उच्च शिक्षा प्राप्त कर फिर इलाहाबाद से लॉ की डिग्री प्राप्त की थी। आचार्य नरेन्द्र देव लखनऊ तथा इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे। वह हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी तथा पाली भाषा के महान विद्वान थे। नेहरू जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आपने स्वतंत्रता आन्दोलन में भी भाग लिया।अन्त में विद्यालय के प्रथम सहायक श्री कुन्तीश अग्रवाल जी नें बताया कि एक बार आठ लड़के एक साथ विद्यालय जा रहे थे तभी रास्ते में एक लड़का कम हुआ तब बाकी लड़कों नें देखा कि वह लड़का रास्ते में लगे खूँटे को उखाड़ रहा था। जब उससे पूछा यह क्या कर रहे हो तब उसने कहा मैं रास्ते में किसी और के चोट न लगे इसलिए इस खूँटे को उखाड़ कर फेंक रहा हूँ। वह लड़का कोई और नहीं अपने सरदार वल्लभ भाई पटेल जी थे। आजादी के बाद भारत देश 565 रियासतों में बँटा हुआ था लेकिन पटेल जी ने इन रियासतों को एक करके अखण्ड भारत का निर्माण किया इसलिए इनके जन्मदिन को एकता दिवस के रूप में मनाते हैं। इस अवसर पर विद्यालय के भैयाओं की ‘रन फॉर यूनिटी‘ का आयोजन भी हुआ। जिसमें विद्यालय के भैयाओं नें उत्साहपूर्वक भाग लिया। इस अवसर पर समस्त विद्यालय परिवार उपस्थित रहा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें